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मेरी माँ


मैंने जब से होश संभाला 
देखा एक दया और 
ममता की मूर्ति को 
जो खुद भूखे रहकर 
मुझे खिलाती थी भरपेट ,
जब मुझे लग जाती थी ,
छोटी सी चोट ,
मेरे रोने से पहले 
मेरे रोने से पहले 
छलछला जाती थी उसकी आँखे !

आज जब मैं बड़ा हो गया हूँ 
उसके विचारों को ,
उसके आशाओं को,आकांक्षाओं को 
रूढ़िवादिता और पुराने विचार कहकर ,
हसी में टाल देता हूँ 

फिर भी ,
ओ मेरे सुखद कल के लिए ,
मुझे चिराऊ होने का आशीर्वाद लेने ,
रोज मंदिर जाती है ,
वर्त और उपवास करती है 
क्योंकि वो ,
मेरी माँ है 

चन्दन कुमार पंडित 

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