Sahitya DarshannStory,Poems.shayari,quotes,Gazals,कवितायें शायरी कहानियाँ

 

लालच

उठ जा राजू बेटा आज क्या घास काटने नहीं जाना है?.......माँ की आवाज जब राजू के कानों में पड़ी तो वो तुरंत बिस्तर से उठ गया.....और अपने औजारों को लेकर जंगल की तरफ घास काटने चल दिया...!!

बहुत समय पहले की बात है....पहाड़ों की तलछटी में बसे एक गाँव में राजू अपने माँ के साथ रहता था....उसके पिता की मौत हो चुकी थी...तो घर चलाने की जिम्मेदारी उसी के कन्धों पर आ गयी थी....राजू एक घसियारा था वो जंगल से घास काटता था और उसे जाकर शहर में बेचता था.....जंगल से घास काटकर बेचना ही उसके कमाई का एकमात्र जरिया थी......

एक दिन अचानक राजू जब 

जंगल से घास काटकर लौटा तो देखा उसकी माँ की तबियत बहुत ख़राब है जब तक वो पास के गाँव से वैद्य जी को बुला कर लाता तब तक उसकी माँ को देहांत हो चुका था......माँ के गुजरने के बाद राजू अकेला पड़ गया था और उसे जब भी अपने माँ की याद आती तो वो जंगल में जाकर अपने माँ के कब्र पर बैठकर रोता रहता था....जहाँ पर उसकी माँ की कब्र थी उसी के पास एक बहुत बड़ा पोखरा था वहीं पर एक परी जिसका नाम सोनपरी था वो विचरण करने आया करती थी.......एक दिन जब वो नहा कर निकली तो उसके कानों में राजू के रोने की आवाज पड़ी तो उसका ह्रदय द्रवित हो उठा.......लेकिन उस दिन वो उसे अनसुना करके अपने परीलोक वापिस चली गयी....जब वो दुसरे दिन आई तो देखा राजू फिर उसी कब्र के पास बैठा हुआ था और रो रहा था.....अब उसने उसकी मदद करने का निश्चय किया....वो एक दिन राजू का पीछा करते हुए उस जगह पर पहुँच गयी...जहाँ पर राजू घास काटा करता था....जब राजू घास काटकर चला गया तो उसने अपनी छड़ी से वहां की घास को फिर से पहले जैसा हरा भरा कर दिया..दुसरे दिन जब राजू घास काटने आया तो फिर से उस जगह पर हरी भरी घास देखकर हैरान रह गया....और वो अत्यंत हरी भरी और ताज़ी घास लेकर बाजार गया , बाजार में बेचने पर उसे पहले से ज्यादा पैसे मिले और वो तुरंत बिक भी गयी......ऐसा कई दिनों तक चलता रहा तो एक दिन राजू ने घास बढ़ने का रहस्य जानने का निश्चय किया...और फिर एक दिन घास काटकर जाने के बजाय कुछ दूर जाकर एक पेड़ के पीछे छिप गया.....कुछ देर बाद वो परी आई और उसने छड़ी घुमाकर फिर से घास को पहले जैसी हरी भरी कर दिया......राजू ये देखकर अत्यंत हैरान रह गया और उसे आज रात भर नींद नहीं आई उसने परी से मिलने का निश्चय किया....दुसरे दिन जब परी घास पर अपना जादू कर रही थी तो वो पीछे से पहुँच कर कृतज्ञता दिखाते हुए उसके पैरों पर गिर पड़ा....पारी इस तरह से राजू के अभिवादन से अभिभूत होकर उसे उठाकर गले लगा लिया........अब राजू और परी साथ साथ घूमते और खाते पीते थे..सोनपरी ने उसे बुत सोने चांदी और बहुमूल्य रत्नों के जेवरात दिए !!

एक दिन राजू सोनपरी से अपनी छड़ी के बारे में बताने के लिए हठ करने लगा , कुछ देर ना नुकुर करने के बाद पारी ने बताया की ये छड़ी के बारे में बताने लगी

--राजू ये सिर्फ दिखने के लिए होता है असली जादू मेरी इस अंगूठी में छिपा है....सोनपरी ने उसे अपनी अंगूठी दिखाते हुए कहा.

क्या मैं ये कुछ देर के लिए पहन सकता हूँ

-नहीं , राजू इसमें ही मेरी जान है अगर मैंने इसे किसी को दे दिया तो मैं मूर्छित हो जाउंगी और अगर घड़ी भर के अंदर ये मेरे उंगली में ना पहनाई गयी तो मैं मर जाउंगी

उस दिन राजू ना पहनने के लिए मान गया लेकिन उसके मन में पाप जाग गया .......वो सोनपरी को अपने प्रेम पाश में फंसाने लगा......कुछ ही दिनों के अन्दर वो अपने कुत्सित जाल में परी को फँसाने में कामयाब हो गया और उसने अपने परी से अपनी प्रेम परीक्षा में खरा उतरने के बात कहते हुए कुछ देर पहनने के लिए वो अंगूठी मांग ली...सोनपरी उसके पूरी तरह वश में थी तो उसने अंगूठी दे दी....अंगूठी निकालते ही सोनपरी मुर्च्छित हो गयी और वो सोनपरी को वहीं पर मुर्च्छित छोड़कर भाग आया.....घर आकर सारे सोने चांदी आदि बांधकर किसी और जगह जाकर बसने के लिए वहां से तुरंत प्रस्थान कर दिया.....इधर सोनपरी अंगूठी ना पाने की वजह से मृत्यु का ग्रास बन गयी....!!

जब राजू जा रहा था तो रास्ते में उसके काफिले को डाकुओं ने घेर लिया....और सारे सोने चांदी और पैसे छीन लिए उसने डाकुओं की नज़र से बचाकर अंगूठी को अपने मुहँ में रख लिया....जब डाकू सारा सामान छीनकर चले गये तो गायब हो जाने के डर से वो अंगूठी को मुहँ में रखे रखे वहीँ सो गया.....

जब सुबह राजू की आँख खुली तो उसे प्यास लगी....उसने काफिले को छोड़ दिया और पानी की तलाश में इधर उधर घुमने लगा अंत में उसे पास में ही एक मीठे पानी की झील दिखाई दी...उसने वहां पहुचकर खुद को स्वच्छ किया और जी भर कर पानी पिया...लेकिन ये क्या उसकी प्यास नहीं नहीं जा रही थी...ढेर सारा पानी पीने के बाद भी उसकी प्यास नही गयी...तो उसे अपनी अंगूठी का ध्यान आया तो उसे याद की वो उसे रात में मुहँ में रखकर सो गया था.....और नींद में उसने उसे निगल लिया है.......कुछ देर बाद राजू का शरीर उसे भारी लगने लगा...जब उसने अपनी प्रतिबिम्ब को झील में देखा तो वो काँप गया वो एक भरी भीमकाय राक्षस बन चुका था...उसने चिल्लाने लगा उसके चिल्लाने से सारा जंगल गूंज गया और उसके काफिले वाले भी जंगल से भाग गये.......उसने चिल्लाते हुए सारा जंगल तहस नहस कर दिया लेकिन वो अब कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि उसके पास अब सोनपरी की जादुई अंगूठी नहीं थी...और वो राक्षस बनकर ही रह गया...इस तरह उसे अपने लालच और पाप का परिणाम मिल गया था

बोध---लालच पाप का बाप है और ये एक बुरी बला है अतः इससे .....!!!हमेशा बचकर रहना चाहिए

सूर्य नारायण शुक्ल

 

Share