जब हम चाहते आँखे खोलते
जब चाहते तब बंद कर लेते
ये सब संभव है केवल
आँखों की पलकों के चलते
आँखों की पलकों के जैसा
काश कान के दरवाजे भी होते !
जब चाहे तब खोल लेते ,
जब चाहे तब बंद कर लेते !!
जब कोई हमे डाटता ,
दरवाजा बंद कर सुनते रहते
दिल्ली की polution से प्रॉब्लम भी न होता
यदि कान का दरवाजा होता ,
कोई किसी से मतलब न रखता
अपना अपना काम सब करता ,
हार्ट पेशेंट के लिए भी अच्छा होता
यदि कान का दरवाजा होता
इस विशाल शरीर को बनाते समय ,
शायद भगवन भूल गए होंगे
प्रमुख अंग कान में ,
दरवाजा लगाना भूल गए होंगे
भगवान के भूल की सजा हम इस कदर भुगत रहे हैं
इतने शोर शराबे में भी बिन दरवाजे के जी रहे हैं
स्वाति