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चिठ्ठियाँ

अब कहाँ खो गयी वो सभी चिठ्ठियाँ 
खुशबुओं में नहायी सजी चिठ्ठियाँ 
अब चलन में नहीं प्यार की चिठ्ठियां 
लोग लिखते हैं बस काम की चिठ्ठियाँ 

वो कहाँ तक छुपाता बहा दी सभी 
जान से भी प्यारी तेरी चिठ्ठियां 
उसके छूने से जो हो गयी मखमली 
भेज दे काश फिर वही चिठ्ठियाँ 

अक्श उभरता था जिनमे तेरे रूप का 
कुछ सलोनी तो कुछ सांवली चिठ्ठियाँ 
खुश्बुएं थी ,नजाकत थी ,अंदाज थे 
याद आयी मुझे नरगिसी चिठ्ठियां 

रात भर ओस के पाँखुरी पाँखुरी 
लिख के भेजी मुझे शबनमी चिठ्ठियाँ 
गोपियों ने सुनी ,राधिका ने पढ़ी 
श्याम की बासुरीं ने लिखी चिठ्ठियां 

गोपियों का विस्वास न देखो डिगा 
लेके उद्धव चले ज्ञान की चिठ्ठियाँ 
एक बेवा के अश्को से लिखी हुयी 
दफ्तरों दफ्तरों घूमती चिठ्ठियाँ 

दिल के औरक पे जो मैं लिखता रहा 
किसको भेजू मई वो दर्द क़ी चिठ्ठियां 
उसकी बेटी पढ़ने गयी जो हॉस्टल 
माँ ने भेजी नसीहत भरी चिठियाँ 

सुनी आँखों में मंजर जगाती हुयी 
सोई रातो में कुछ जागती चिठ्ठियां 
सोचती हु ये दिन रात बैठकर 
ये गजल है या मेरी दर्द भरी चिठ्ठियाँ 

सौम्या पांडेय 

 

 

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