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शहीद के बेटे की दीपावली

चारो तरफ़ उजाला पर अँधेरी रात थी।
वो जब हुआ शहीद उन दिनों की बात थी॥
आँगन में बैठा बेटा माँ से पूछे बार-बार।
दीपावली पे क्यो ना आए पापा अबकी बार॥

माँ क्यो न तूने आज भी बिंदिया लगाई है ?

हैं दोनों हात खाली न महंदी रचाई है ?

बिछिया भी नही पाँव में बिखरे से बाल हैं।

लगती थी कितनी प्यारी अब ये कैसा हाल है ?

कुम-कुम के बिना सुना सा लगता है श्रृंगार....

दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥

 

बच्चा बहार खेलने जाता है...और लौट कर शिकायत करता है....

 

किसी के पापा उसको नये कपड़े लायें हैं।

मिठाइयां और साथ में पटाखे लायें हैं।

वो भी तो नये जूते पहन खेलने आया।

पापा-पापा कहके सबने मुझको चिढाया।

अब तो बतादो क्यों है सुना आंगन-घर-द्वार ?

दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥

 

दो दिन हुए हैं तूने कहानी न सुनाई।

हर बार की तरह न तूने खीर बनाई।

आने दो पापा से मैं सारी बात कहूँगा।

तुमसे न बोलूँगा न तुम्हारी मैं सुनूंगा।

ऐसा क्या हुआ के बताने से हैं इनकार

दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥

 

विडंबना देखिये....

पूछ ही रहा था बेटा जिस पिता के लिए ।

जुड़ने लगी थी लकडियाँ उसकी चिता के लिए।

पूछते-पूछते वह हो गया निराश।

जिस वक्त आंगन में आई उसके पिता की लाश।

 

वो आठ साल का बेटा तब अपनी माँ से कहता है....

 

मत हो उदास माँ मुझे जवाब मिल गया।

मकसद मिला जीने का ख्वाब मिल गया॥

पापा का जो काम रह गया है अधुरा।

लड़ कर के देश के लिए करूँगा मैं पूरा॥

आशीर्वाद दो माँ काम पूरा हो इस बार।

दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥

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