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जिंदगी........एक अधूरा सफ़र

अध्याय-3

कुछ दिनों बाद ऑफिस के लोगो से दबी-दबी सी बात सुनने को मिलने लग गयी थी, हालांकि हमने कभी उन लोगों की बातों की परवाह नहीं की, क्योंकि हमारे बीच ऐसा कुछ भी नहीं था, जो गलत हो, या जिससे दूसरों का कुछ बोलने का मौका दें । पीछे से कोर्इ कुछ भी बोले क्योंकि लोगों का काम तो बोलना है, तो वे तो बोलेंगे ही। हां ये जरूर था कि अगर किसी दिन हमने बात नहीं की तो हम दोनों का ही मन नहीं लगता था। और ये भी था कि अगर किसी दिन राज ऑफिस नहीं आये तो ऑफिस के सब लोग मुझसे ही पूछते थे कि राज क्यों नहीं आया, या मैं नहीं आती थी तो सभी राज से पूछते थे कि पिया आज ऑफिस क्यों नही आयी है। हमारी दोस्ती तब तक बहुत गहरी हो चुकी थी, अब हमारे बीच में सब कुछ बातें होने लग गर्इ थी, घर से लेकर ऑफिस तक और ऑफिस से लेकर अपने जीवन और करियर तक ।

एक दिन मैंने राज से पूछा की तुम्हें कैसी जीवन साथी चाहिए, और फिर उन्होंने जो बताया कि मुझे जीवन साथी में ये बातें चाहिए, तो मैं तो हतप्रभ रह गयी । उनका कहना था कि मुझे ऐसी पत्नी चाहिए जो सिर्फ मेरी सुने, मैं कहूँ तो बाहर निकले घर से, मैं कहूँ तो खाना खाए, पानी पिए, और भी बहुत कुछ, मुझे उनकी बातों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था, कि राज ऐसा कैसे सोच सकते हैं, हालांकि बाद में पता चला कि ऐसा कुछ नहीं है, वो सिर्फ मजाक कर रहे थे, मजाक ही नहीं वो मुझे चिढ़ा रहे थे।

एक दिन मैं और राज ऑफिस में बैठे थे, मेरा मूड उस दिन सही नहीं था, राज ने पूछा “पिया क्या हुआ तुम्हें, आज सुबह से उदास क्यूँ हो, क्या बात है, तबियत सही है ना, मैंने बोला “हाँ ठीक है, सब ठीक है, बस यूं ही मन नहीं लग रहा है, तो इस पर राज बोले “घर में सब ठीक है ना।“ राज सही था, उसने मुझे पहचान लिया था, और फिर मैं भी कुछ उनसे छुपाना नहीं चाहती थी, क्योंकि राज बहुत अच्छे थे, मुझे उन पर पूरा विश्वास था।

मेंने राज को वो सब बता दिया जिस परेशानी को मैं और मेरे पापा झेल रहे थे, मैं जब राज से वो बातें बता रही थी, जिससे ना केवल मुझे बल्कि मेरे घरवाले भी परेशान थे, मैं पूरी कोशिश कर रही थी, कि मैं राज को सब ठीक प्रकार से बता दूँ। लेकिन वो परेशानी ऐसी थी कि मेरी आँखें भर आयी थी, दर्द झलकने लग गया था, मेरे गले की आवाज और आँखों से। राज ने हालांकि मुझे महसूस नहीं होने दिया था, क्योंकि उस समय राज ने महसूस करा दिया होता तो शायद मैं वहीं रो देती।

राज ने उस दिन मुझसे बहुत बातें बतार्इ, जो मैंने आज तक उनसे नहीं सुनी थी, बाहर चाय पिलाने ले गये और बोले “पिया सब ठीक हो जायेगा, बस भगवान पर भरोसा रखो”, राज की भगवान कृष्ण में बहुत आस्था थी, हर बात में राज यही बोलते थे कि “मेरे साथ कृष्णा है, मेरे साथ कभी गलत नहीं होगा।”

अगले दिन तारीख थी 28-9-1989, तब से राज का व्यवहार बिल्कुल बदल गया था मेरे लिए, अब उनका व्यवहार मेरे लिए बहुत अच्छे दोस्त की तरह हो गया था, मेरे लिए बिल्कुल भी लापरवाह नहीं रहते थे, मेरी बातों को ध्यान से सुनते थे, और तब से अगर उनके साथ कुछ भी हुआ है, तो मुझे जरूर बताते थे, राज का ऐसा व्यवहार इससे पहले मैंने कभी नहीं देखा था।

1-10-1989, राज पूछने लगे कि “पिया, क्या तुम्हारी किसी लड़के को अपना जीवन साथी बनाने की सोचा है।” तो मैं बोली नहीं राज, आज तक ऐसा लड़का मुझे मिला ही नहीं, सच में तुमने आज तक किसी के लिए सोचा भी नहीं” राज ने कहा।

मैं राज से कुछ भी झूठ नहीं बोलती थी, तो मैंने कहा राज एक लड़का था, जो देखने में बहुत अच्छा था तुम्हारी तरह, लेकिन मैंने सिर्फ उसे देखा था, बात नहीं की कभी क्योंकि मैंने उसे एक शादी में देखा था, इससे ज्यादा कुछ नहीं। लेकिन मैंने राज से कहा था कि, बहुत अच्छा था, तुम्हारी तरह” तो राज बोले “पिया, मैं कहाँ से अच्छा हूँ, जरा बताओगी”। मैने राज की उस बात को बातों ही बातों में हंसकर टाल दिया था, फिर उन्होंने भी कुछ ज्यादा नहीं पूछा था।

उस दिन की बातों से मुझे लगा, शायद राज मेरी तरफ आकर्षित होने लगे हैं। हां ये सही था, मेरा भी आकर्षण था राज की तरफ, ये बात वो जानते थे, लेकिन उन्होंने कभी महसूस नहीं होने दिया था। मुझे नहीं पता था कि क्या मुझे राज से प्यार हो गया है। लेकिन इतना तय था उनकी परेशानियाँ अपनी लगने लग गयी थीं, मुझे राज से बातें करना और भी अच्छा लगने लगा था । और राज, वो तो उस दिन के बाद मेरे आगोश में समाते ही चले गये थे। हाँ राज को प्यार हो गया था मुझसे, और अगर उन्हें मुझसे प्यार हुआ था, तो उसका कारण सिर्फ मैं थी, क्योंकि वो मुझे अच्छे लगते थे और मैं हरसंभव प्रयास करती थी कि राज सिर्फ मुझसे बात करें। और 1-10-1989 को राज ने मुझे महसूस करा दिया था कि वे मुझसे प्यार करते हैं, सच मैं मुझे बहुत खुशी हुर्इ उस दिन, क्योंकि उस दिन उस लड़के को मुझसे प्यार हो गया था जिसे मैं भी पसन्द करती थी।

उस दिन रात को जब मैं बिस्तर पर गयी, उस रात में कुछ अलग सोच रही थी, बिल्कुल अलग, क्योंकि यहाँ से सब कुछ बदलने वाला था। रात को मुझे नींद नहीं आ रही थी, हाँ ये बात सही है, कि मैं भी राज से प्यार करती थी । उस रात बिस्तर पर करवटें बदल रही थी, रह-रह कर राज और राज की बातें याद आ रही थी, मुझे राज के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा था । प्यार का अहसास कैसा होता है, मैंने उस दिन जाना, एक अजीब सी खुशी, मन में नर्इ-नर्इ बातों का स्फुटन, अब तक राज के द्वारा की गर्इ बातों को जब सोच रही थी तो लग रहा था कि राज की बातें, जैसे बातें नहीं हैं, कानों में उनकी बातें मधुर टंकार की तरह गूंज रही थीं।

मुझे राज के द्वारा कही गर्इ सारी बातें याद आ रही थीं, और मैं यादों की गहरार्इ में डूबती जा रही थी, एक रोमांचक अनुभव हो रहा था मुझे, शरीर पर रोयें ऐसे लग रहे थे, जैसे बहुत तेज सर्दी पड़ रही हो, और मुझे सिर्फ राज का चेहरा दिखार्इ दे रहा था । धुंधला सा लेकिन कहीं न कहीं मेरा भविष्य भी दिख रहा था राज के साथ

पिया ऐसा कुछ भी नहीं होगा, तेरी शादी मैं करूँगा, क्योंकि तुम मेरी बेटी हो, तुम पर मेरा और सब से ज्यादा अधिकार है, और फिर मैं भी तुम्हें प्यार करता हूँ।” पापा का ऐसा कहना था और जैसे मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गर्इ हो, लगा मैं अँधेरे में गिर रही हूँ, और जिसका अन्त भी नहीं आ रहा है। लेकिन मैंने हिम्मत करके कहा पापा मैं राज को बेहद प्यार करती हूँ, और राज भी मुझसे प्यार करता है, वो मुझे खुश रखेंगे। पापा बोले “पिया, फिर अपने पापा से शिकायत मत करना”।

पिया, पिया बेटा आज ऑफिस नहीं जाओगी क्या, कब तक सोती रहोगी।” मम्मी का इतना कहना था कि पापा बोले, सोने दिया करो पिया को, बेटा नींद नहीं आ रही है, तो और सो जाओ” पापा के शब्द कितने अच्छे लग रहे थे, कह रहे थे मैं ऑफिस छोड़कर आ जाऊँगा अगर लेट होगी तो।

कह रहे थे पिया मेरी बेटी है, तुम्हारी नहीं, तो मम्मी बोली हाँ, हाँ और चढ़ाओ सिर पर। पापा बोले, देखो पिया का काम तुमसे नहीं होता तो मैं कर दिया करूँगा, लेकिन उसे परेशान मत किया करो।

मैं बिस्तर पर लेटी-लेटी पापा और मम्मी की प्यार भरी तकरार सुन रही थी। ये मेरे पापा, कितना प्यार करते हैं मुझे, तो फिर थोड़ी देर पहले पापा क्यों कह रहे थे कि, पिया मुझसे शिकायत मत करना ” लेकिन दुसरे पल खयाल आया कि वा तो सपना था ।

थोड़ी देर बाद मम्मी के दूसरे शब्द कान में आये कि, देखो अब पिया बड़ी हो गर्इ है, उसे दूसरे घर जाना है, उसे अपने लाड़-प्यार में ज्यादा बिगाड़ो मत, परार्इ धरोहर है। मम्मी का इतना कहना था तो पापा गुस्से में बोले “खबरदार जो आज के बाद मेरी पिया बेटा के बारे में कुछ भी बोला तो।”

थोड़ी देर रूकने के बाद पापा ने कहा “देखो मैं अपनी पिया के लिए ऐसा घर देखूँगा, जहां हमारी पिया को कुछ ना करना पड़े, और फिर हमारी पिया तो ऑफिस जाएगी वो क्यों करेगी काम।

मैं ऑफिस जाने के तैयार हो रही थी, तो तीन चीजें मेरे दिमाग में बार बार घूम रही थी, एक तरफ राज, उसका प्यार और उसकी तरफ मेरा आकर्षण, दूसरा पापा का प्यार, उनकी मेरी शादी के लिए सोच, और तीसरी रात को आया हुआ सपना जिसमें मेरे पापा कह रहे थे “पिया, फिर मुझसे शिकायत मत करना।

सपना अधिक सोचने पर मजबूर कर रहा था, लेकिन बाद में पता चला कि उस सपने पर ध्यान नहीं देना चाहिए था, ध्यान ही क्यों वो सपना आना ही नहीं चाहिए था, क्योंकि मैं यथार्थ को छोड़कर सपने की कल्पना को अधिक महत्व दे रही थी, काश उस सपने पर ध्यान नही होता तो कहानी कुछ और होती, लेकिन समय की परिभाषा को कौन बदल सकता है।

जिस दिन से राज का मेरी तरफ आकर्षण लगने लगा उसके बाद जब मंगलवार आया तो, मैंने राज को लगभग 10:30 बजे बोला चलो राज चाय पीने चलते हैं, क्योंकि राज मंगलवार को हनुमानजी का व्रत रखते थे, मुझे लगा राज सुबह से भूखा है, इसलिए राज को चाय पीने बाहर ले चलना चाहिए, क्यूंकि ऑफिस में चाय का मिलने का समय 11:00 से 11:30 का था।

मैं राज से नहीं बोल पायी कि “राज तुमने सुबह से कुछ खाया नहीं है, इसलिए तुम्हें बाहर चाय पर ले जाना चाहती हूँ।” लेकिन राज काम में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने कहा “पिया, तुम्हें परेशानी ना हो तो थोड़ी देर बाद चलें या फिर थोड़ा रूक जाओ तो ऑफिस में ही मिल जायेगी।

मैं सही नहीं बोल पायी, मैंने कहा राज मैं जा रही हूँ, अपनी दोस्त के साथ मुझे लगा यदि मैं जाऊँगी तो राज आ ही जाएँगे, लेकिन राज काम में ज्यादा ही व्यस्त थे, वो नहीं आए।

बाहर चाय वाले भैया ने मुझे और मेरी दोस्त को चाय बना दी थी, हम चाय पीने लगे तो खयाल आया जिसे चाय पिलानी थी, वो तो आए ही नहीं थे, और राज ने सुबह से कुछ खाया भी नहीं था।

भैया, एक चाय और बना दो” मैंने चाय वाले भैया को बोला, मैं चाय राज को अन्दर ही लेकर चली गर्इ, जब मैंने राज की टेबल पर चाय रखी और बोली कि “भाड़ में जाये तुम्हारा काम पहले तुम चाय पीओ”, मेरे ऐसा कहने पर राज का मुझे तिरछी नज़रों से देखना क्या गजब ढ़ा रहा था । लेकिन उस समय राज कुछ बोले नहीं, बस चाय पीने लग गये थे । और मैं अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गर्इ और अपना काम करने लग गर्इ।

दोपहर के खाने के बाद राज मेरे पास आये और बोले (राज का व्रत था, उन्होंने उस दिन खाना नहीं खाया था) पिया, मैं किन शब्दों में तुम्हारा धन्यवाद करूँ” मैं बोली किस बात का धन्यवाद, इसपर राज बोले “क्या वास्तव में तुम्हें नहीं पता कि किस बात के लिए मैं तुम्हें धन्यवाद दे रहा हूँ” । मैने कहा, राज अगर दोस्ती में आज के बाद धन्यवाद और मुझसे गलती हो गर्इ, सॉरी” ये शब्द आऐ तो उसी दिन से हमारी दोस्ती खत्म।

जिस दोस्त के साथ मैं चाय पीने गर्इ थी, और थोड़ी देर पहले जिक्र किया कि राज नहीं गये तो, मैं दूसरी दोस्त को चाय के लिए ले गर्इ, वो अक्सर मुझसे राज के बारे में पूछा करती थी, और बोलती थी कि “पिया, तू भाग्यशाली है कि तुझे राज जैसा लड़का मिला”, मैं हंसकर बोल देती ऐसा कुछ नहीं है, हम सिर्फ अच्छे दोस्त हैं।

एक दिन बोली “पिया, तु मुझे मत बता लेकिन मैं बता रही हूँ तुझे, जितना तू अपने-आप को प्यार करती है ना, उससे भी ज्यादा राज तुझे प्यार करता है।” ये बात मैं भी जानती थी। और जानती ही क्या थी, प्यार भी करती थी, लेकिन अभी तक राज ने मुझसे इजहार नहीं किया था । और मैं तो प्यार का इजहार कर ही नहीं सकती थी, क्योंकि मैं तो लड़की थी । मुझे तो सुनना था राज से कि “पिया मैं तुमसे प्यार करता हूँ, क्या तुम मुझसे शादी करोगी।” और मैंने तो यह भी सोच रखा था, कि मैं राज से मना भी करूँगी, क्योंकि जो लोग मुझसे प्यार करते हैं, उन्हें मुझे नखरे दिखाना पसन्द था । और मेरा नखरा ही मुझे सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाने वाला साबित हुआ, लेकिन ये सब राज के जाने के बाद पता चला।

अक्सर मेरा बैग और पर्स राज के पास टेबल पर होता था और राज का पर्स मेरे पास, मुझे पैसों की जरूरत होती तो मैं राज से उसका पर्स मांगती थी। और फिर उनका पर्स मेरे पास ही रहता था, और यदि राज को कभी जरूरत होती तो अक्सर वो मेरे पास आकर बोलते थे, पिया, जरा तुम्हारा पर्स बताना, कहाँ है।” मैं उन्हें अपना पर्स बता देती, और जब राज पर्स में से पैसा ले रहे होते थे, तो मेरा यही कहना होता था “राज लड़कियों का पर्स लड़के नहीं खोलते।” तो राज के रटे-रटाये शब्द होते थे, मैं जानता हूँ, पिया तुम यही कहोगी और हाँ तुम कोर्इ लड़की नहीं हो, मेरी दोस्त हो । एक बात और जब तुम चाहती हो कि मैं तुम्हारा पर्स ना खोलूं तो फिर क्यूं बताती हो कि पर्स को और क्यूं देती हो।” मैं बस उन्हें यही बोलती थी, कि “राज, आप पागल हो”

राज ने मेरी कर्इ आदतें बदल दी थीं, पिया, ये नाखून क्यों बढ़ा रखे हैं इतने” राज का ये कहना था, तो मैं बोली राज ऐसा क्यूं कह रहे हो, मुझे तो बढ़े हुए नाखून अच्छे लगते हैं।

लेकिन दूसरे दिन मेरे नाखून कटे हुए थे, क्योंकि मुझसे राज ने बोला था और मुझे राज की कही हुर्इ हर बात अच्छी लगती थी, और मानती भी थी, ये बात और है कि मुझे उस वक्त मना करना होता था जब राज मुझे बोलते थे।

10-10-1989 को राज का पर्स मेरे पास ही रह गया था, क्योंकि मुझे कुछ खुले पैसे चाहिए थे, शाम को मैं उनका पर्स देने गयी, लेकिन उस दिन राज ऑफिस से जल्दी निकल गये, और उनका पर्स मेरे ही पास ही रह गया, घर जाने के बाद मैं चाह रही थी कि दोस्त का पर्स नहीं देखना चाहिए लेकिन दूसरे पल खयाला आया, जब राज ही मेरा है Share