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जिंदगी........एक अधूरा सफ़र

अध्याय-5

10-12-1989, राज किसी काम से जयपुर गये थे, तीन दिनों के लिए, उन्हें जब भी समय मिलता था अपने काम से तो वे मुझसे ही बतियाते रहते थे, कहते थे “पिया, तुम्हारा चेहरा देखे बिना मन नहीं लगता है, कैसा जादू कर दिया है तुमने मुझ पर” मैं बस उन्हें बोलती कि “राज तुम पागल हो अपना इलाज करवा लो अच्छे से डॉक्टर से”, राज बोलते कि अगर तुम मेरे पास हो तो मुझे किसी की जरूरत नहीं है।

उनके जयपुर से आते ही हमें ऑफिस की तरफ से हिमालय की वादियों में घूमने जाना था तीन दिनों के लिए, तो मैंने राज से कहा तुम जयपुर से आ जाओ जल्दी अब हिमालय की सर्द वादियों में घूमने जा रहे हैं, वहां हमें काम भी नहीं करना है और पूरे दिन साथ रहना है, फिर खूब सारी बात करेंगे और अपना मन भर लेना बातें करके l कितने खुश हुए थे राज, जब मैंने उन्हें कहा था कि खूब सारी बातें करेंगे।

कुछ चीजें होती हैं जो हमारे अन्दर कुछ ना कुछ कमियाँ छोड़ जाती हैं, एकाध राज में भी थी, और मुझमें भी थी, लेकिन इन सब बातों से परे मैं एक बात जानती थी , कि राज मुझसे बेहद प्यार करते हैं । और मेरा दिल भी यही कहता था की राज से अच्छा लड़का मुझे और कोई नहीं मिलेगा लेकिन दूसरी तरफ मेरा दिमाग कुछ और ही सोचता था

16-12-1989 को हमें ऑफिस से जाना था घूमने (सैर) के लिए, उस दिन राज मेरे पास आए और बोले (समय था लगभग शाम के 4 बज रहे थे), चलो पिया कहीं एकान्त में चलते हैं, बस तो रात में 11:00 बजे चलेगी (ऑफिस में बहुत शोर हो रहा था तब, क्योंकि कोई भी काम नहीं कर रहा था, सब लोग जाने कि तैयारी कर रहे थे) । इसपर मैं राज से बोली “नहीं राज मुझे सोना है इसलिए मैं किसी दूसरे दोस्त के घर जाकर सो रही हूँ”।

राज मेरे पास से चले गये और फिर लगभग 9:00 बजे आए मेरे लिए खाना लेकर, लो, पिया खाना खालो”, मैंने कहा भूख नहीं है, राज ने कर्इ बार कहा कि थोड़ा खा लो लेकिन मैंने नहीं खाया और राज को खाना फेंकना पड़ा, और इसी वजह से राज दूसरी बस में चले गये जिस बस में नहीं थी, उसमें राज गये थे।

एक बस ऐसी थी जिसमें शोर-शराबा नहीं था वो हमारी बस थी, दूसरी बस में शोर-शराबा था, जिसमें राज गये थे उसमे सब लोग मस्ती कर रहे थे, हालांकि उन्हें शोर-शराबा बिल्कुल पसन्द नहीं था, लेकिन उन्होंने मुझे महसूस नहीं होने दिया था l दूसरे दिन मैंने ही राज पर आरोप लगा दिया था, कि आपको, दारू(शराब) पीनी होगी, मस्ती करनी होगी, इसलिए उसमें गये, यहाँ तो मैं तुम्हें ये सब करने नहीं देती।

हालांकि मैं उन्हें जब भी बोलती थी, आप दारू(शराब) पीते हो, तो राज गुस्सा हो जाते थे, क्योंकि राज का दूर-दूर तक शराब-सिगरेट से वास्ता नहीं था, लेकिन मैं उन्हें चिढ़ाने के लिए बोलती थी।

12-12-1989, अपने-अपने कमरे में सामान रखने के बाद हम लोगों ने साथ में ही नाश्ता किया, मैं अपने साथ कैमरा लेकर गर्इ थी। तो हमने खूबसूरत वादियों के बहुत सारे पिक्चर कैमरे मे कैद किए, दरअसल उन सर्द वादियों का नजारा ही इतना लुभावना था कि हर जगह को कैद करने का मन कर रहा था। हमने लगभग 3 घंटे तक वहां के नजारे का लुत्फ उठाया। उस घूमने और बात करने में कब दोपहर के खाने का समय हो गया पता ही नहीं चला।

करीब दोपहर 1:00 बजे पर राज बोले पिया मैं नहा लेता हूँ, तुम तब तक अपने कमरे में आराम करो फिर खाना खाते हैं। राज के नहाने और खाने में काफी समय लगा दिया था, तब तक तीन बज चुके थे, और तब तक ऑफिस की सालाना मीटिंग चालू हो गर्इ थी, मीटिंग के साथ वहां कुछ कार्यक्रम भी होने थे।

खाना खाते ही राज मुझसे बोले “चलो, पिया मेरे कमरे पर, मुझे और कपड़े पहनने हैं, मुझे सर्दी लग रही है”। तीन बजे हिमालय की वादियों में सर्दी पड़ने लग जाती है, फिर हमें मीटिंग में बैठना था, इसलिए हम जल्दी-जल्दी राज के कमरे पर गये और उन्होंने कपड़े पहन लिए, और एक सर्दी का भारी जैकेट मुझे दे दिया और कहा, पिया ये तुम्हारे कमरे में रख देना, नहीं तो दोबारा आना पड़ेगा और मेरा कमरा दूर है”। मैंने राज का जैकेट अपने कमरे में रख दिया और हम ऑफिस का कार्यक्रम में शामिल हो गए थे।

उस कार्यक्रम मे शामिल होने के ठीक पहले तकरीबन शाम के 3:30 बज चुके थे, राज, ये पैसे, आप रख लो” मैं उन्हें 2700 (दो हजार सात सौ रूपये) हाथ में थमाते हुए बोली। राज ने पैसे रख लिए थे, और पैसे रखने के बाद कहा “अच्छा है यार पिया तुमने मुझे पैसे दे दिये नहीं तो मेरे पास पैसे नहीं थे”। चलो मैंने आपको दान किये, आप ऐश करो मैंने उन्हें कहा, तब तक हम कार्यक्रम हॉल (जो काफी बड़ा बरामदा था) में पहुँच चुके थे।

उसमें कुछ मनोरंजक कार्यक्रम भी चल रहे थे, जैसे सबसे अलग और सुंदर कौन लग रहा है, कौन सबसे ज्यादा हंस सकता है। तभी स्टेज से आवाज आयी सबसे ज्यादा नकद पैसे किसके पास हैं, (इस तरह का भी एक कार्यक्रम था) l राज खड़े हुए और स्टेज पर चले गये, स्टेज पर राज के साथ तीन लोग और थे, सबके पास जो पैसे थे, गिने गये। राज के पास कुल पैसे 6980, दूसरे स्थान पर जो आए उनके पास थे करीब 5500, राज जीत गये। मुझे हँसी आ रही थी, कैसा संयोग बना है, यदि थोड़ी देर पहले मैंने राज को पैसे ना दिये होते तो राज नहीं जीत पाते, शायद स्टेज पर ही नहीं जाते क्योंकि राज सिर्फ वो ही काम करते थे, जिस पर उन्हें विश्वास होता था, नहीं तो राज ऐसा कोई काम ही नहीं करते थे, जिस पर उन्हें संशय हो।

खैर राज को उस जीत के एवज में कुछ चोकलेट्स और ज्यूस का पैकेट मिला था, उनके स्टेज पर से आते ही चोकलेट्स और ज्यूस का पैकेट मैंने ले लिया और उन्हें बोली लाओ ये मेरे हैं, तुम मेरी वजह से जीते हो, उन्होंने पैकेट मुझे दे दिया और कहने लगे “चलो एक चोकलेट तो दे दो अब इसमें से यार”, मुझे उनके चोकलेट मांगने वाले वो शब्द अच्छे लग रहे थे, लग रहा था जैसे कितनी मेहनत करके जीते हैं, और सारी कमाई मुझे देने के बाद अब मुझसे अपना मेहनताना मांग रहे हैं।

6:00 बज चुके थे, बाहर अँधेरा हो चुका था, कर्इ लोग उस हॉल में से अपने-अपने कमरे में जाने लग गये थे। मैं राज से बोली “चलो, यार चलते हैं, अब यहां सब कार्यक्रम खत्म हो चुका है, थोड़ा आराम करके चाय पीयेंगे क्योंकि अब सर्दी बहुत बढ़ चुकी है”। राज ने कहा पिया थोड़ा रुक जाओ क्योंकि हमें अभी टीम प्राइज भी लेनी है, क्योंकि उसे हमारी ही टीम जीतेगी, क्योंकि उन्हें पता था, उनकी टीम सबसे ‘बेस्ट टीम’ की अवॉर्ड जीतने वाली है।

खैर मैं वहां से आ गर्इ क्योंकि मैं थोड़ा आराम करना चाहती थी, और थोड़ी देर बाद ही राज भी आ गये थे, राज ने आते ही अपनी जैकेट पहनी और फिर हमने शाम की चाय के साथ हल्का सा नाश्ता भी लिया था, नाश्ता करते-करते हमें 7:30 बज गये थे।

पिया, चलो मेरे कमरे पर मुझे अपने कपड़े और जूते बदलने हैं”। मैं और राज उनके कमरे जो थोड़ा दूर था वहां जाने के लिए हमें करीब 200-300 मीटर बिल्कुल अँधेरे में चलना था, पहाड़ी इलाका था, रास्ते मे लाइट भी नहीं थी, तो मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था।

राज ने कमरे पर पहुँचते ही कपड़े बदल लिए थे, और जो उन्होंने पहन रखे थे, वो कपड़े मुझे दे दिये और कहा “पिया इन कपड़ों को ऐसे सेट कर दो जिससे इन्हें मैं बैग में रख सकूँ,” मैं उनके कपड़े सही करते हुए बोली कुछ सीख लो, बहुत काम करने हैं जिंदगी में” वे मेरा ऐसा कहने पर हंसने लगे और कहने लगे “ये काम मेरा नहीं है, यदि तुम मेरे साथ नहीं आते तो मैं इन कपड़ों को ऐसी ही ठूँस देता”।

कोर्इ बात नहीं अब चलो भी, इतना दूर कमरा लिया है, कि दो बार लाकर यहाँ हैरान कर दिया है, और मुझ पर एहसान और कर रहे हो। “चल रहा हूँ ना, बस दो मिनट और रुको मेरे बालों को सही कर दो जरा”, राज कितनी मासूमियत से ये सब कह रहे थे, मुझे लगा जैसे मैं उनकी सब कुछ हूँ, लग रहा था, जैसे राज कोर्इ बच्चा हो और मैं उसकी देखभाल करने वाली l अब ये तुम्हारे बाल भी, रोज कैसे करते हो”, पिया अगर तुम मेरे पास रहोगी तो रोज तुम ही करोगी ये काम” मुझे उनकी इन बातों पर बहुत प्यार आ रहा था, लेकिन मैं उसे दिखाना नहीं चाहती थी।

उस वक्त राज के कमरे में केवल मैं और राज थे, राज जानते थे, कि मैं भी पसन्द करती हूँ राज को, राज के पास सारे अधिकार थे, ये बात भी शायद वो जानते थे, लेकिन राज ने कभी मेरे लिए गलत नहीं सोचा था, ये बात उस कमरे में बिताये गये वक्त के साथ साबित हो चुकी थी, उस दिन मुझे अपनी पसन्द पर गर्व हो रहा था।

थोड़ी देर बाद हम वहाँ से चल दिये थे, फिर से हमें 200-300 मीटर का रास्ता अँधेरे में ही तय करना था, पहाड़ों में रहने वाले वन्य जीवों की कल्पना सी हो रही थी, मुझे डर का आभास फिर से हो रहा था, लेकिन राज मेरे साथ थे, मुझे उनपर अपने-आप से भी ज्यादा भरोसा था। “राज, यहां कोर्इ आ गया तो, तुम्हें डर नहीं लग रहा क्या़?”, नहीं पिया, मैं हूँ ना तुम्हारे साथ, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है”।

राज मैं थक गर्इ हूँ यार, अब मुझसे चला नहीं जा रहा है, कुछ करो ना” “चलो पिया तुम्हें मैं गोदी में लेकर चलता हूँ”। नहीं राज कोर्इ बात नहीं, लेकिन मैंने उनका हाथ पकड़ लिया था, उनका हाथ पकड़ कर जब मैं चल रही थी, तो लग रहा था जैसे सारी थकान उतर चुकी है, उनका साथ मुझे कितना अच्छा लग रहा था, मैं बयाँ नहीं कर सकती।

थोड़ी देर बाद हम मेरे कमरे पर पहुँच चुके थे, और मैं जाते ही अपने बैड पर लेट गर्इ थी, वहाँ मेरी दो दोस्त पहले से ही मौजूद थीं, राज भी मेरे बगल में आकर बैठ गये थे।

कुछ मिनटों के आराम के बाद राज ने मुझसे कहा “पिया, यार मुझे ग्रीन टी पिला दो ना”, मैंने उन्हें ग्रीन टी दी, लेकिन उस चाय को मैं भी पी चुकी थी, ओह यार राज अब तुम्हें दूसरी देनी पड़ेगी और मैं दूसरी अब बना नहीं सकती” राज ने मुझसे चाय का कप ले लिया था और बोले “अब बनाओ अपने लिए मैंने अपनी ले ली”।

मुझे पता था राज यही चाय का कप लेंगे, और मेरा मन नहीं था उस वक्त चाय पीने का, मैंने जान बूझकर उसे झूठा किया था। राज ने चाय का कप लेकर वो चाय पीने में मशगूल हो गये और मैं बैड पर लेट गर्इ थी, वहीं उनके बगल में ।

वो समय जिसे मैं कभी नहीं भुलाना चाहती ऐसा था वहाँ का सफर l

20-12-1989, वहाँ से आने के बाद जब हम ऑफिस में मिले तो राज ने सबसे पहले अपने फोटो मांगे, जो हमने सफर के दौरान लिए थे। सफर से आने के बाद राज का प्यार और बढ़ गया था, हमने उस सफर का पूरा लुफ्त लिया था, लेकिन पता नहीं क्यों मुझे अब राज में पहले वाली बात नहीं दिखती थी।

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