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निर्भया


सिहरी जाइत अछि देह।
भुटकी जाइत अछि रो।
मौन पैरते ओ निर्भया  के संग
होइ वाला कुकृत ।
मानवता के तार-तार करैत ओ दृश्य।

मूक दर्शक बनल ई समाज।
विवश करैत अछि सोचवाक लेल।
की बीतल हेतै ओकरा माई बाबू के।
जे पैएग पैएगआशा ल आँखि में।
भेजने छलै अपन बेटी के।
पढेवाक लेल शहर।

मुदा कहाँ पता छलै ओकरा सब के।
जे ग्रशि जेतै ओकरा निर्भया के ।
ई निर्लज शहर।
बना लेतै ओकरा अप्पन वासना के शिकार।
चूर चूर भ जेतै ओकर ई सपना।
जे कहियो देखने छलै ओ सब अप्पन आँखि में।

मुदा आब आबि गेलै ओ समाय
मिल के आवाज उठाबय के।
फोरी देबाक ले ओ आँखि के
जे कुदृष्टि डाले कोनो निर्भया पर।
कुचली देबाक फन ओ सपोला के।
जे कोनो निर्भया के ग्रसै लेल आगु बढ़ै।
ताकि फेर कोनो निर्भया के सपना।
पूरा होइ स बंचित नै रहए।


मुकेश कुमार चौधरी

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