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मैं एक औरत हूँ

मैं एक औरत हूँ

मैं ढकूँ तो ढकूँ कहाँ तक ,
अपने को ,कभी नजरो में हूँ ..
तो कभी किताबों में हूँ ,लोगो की बातों में हूँ ,
तो कभी परदे में हूँ ,शायर की शायरी में हूँ ,
चित्रकार की कृतियों में हूँ तो ,
नग्न  !! नग्न   ! और   नग्न........ !!

कभी मुझे वस्त्र के साथ सजा के देखो ,
मैं तब भी उतनी ही सुन्दर नजर आऊंगी ,
तब भी मेरे शरीर की भव्यता ,
उतनी ही प्रतिष्ठित रहेगी ,
 तब भी अपने आपको उतना ही मोहक बनाउंगी !

परा नग्न होकर मैं अपनी ही नजरों में गिर जाऊँगी ,
पूछती रह जाऊंगी ,क्यों देते हो मेरे सूरत को ऐसी सजा ??
क्या आता है ,तुमको इसमें मजा !!
मैं इज्जत की मूरत हूँ !
हर किसी में दिखती वो सूरत दिल से
 स्वीकारो , मैं एक औरत हूँ !
फिर शायद मैं ऐसी नजर नहीं आऊंगी ,मगर इस प्रयत्न के बगैर तो
मैं वस्त्र के साथ भी अधूरी नजर आउंगी
और ताउम्र ये प्रश्न बनकर पूछती रह जाउंगी

मैं ढकूँ तो ढकूँ कहाँ तक। ...

सौम्या पांडेय

 

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