कुछ रिश्ते हैं खुदा बनाते ,कुछ खुद ही बन जाते हैं
उस अनजाने रिश्ते में न जाने कैसे हम बंध जाते हैं
दोस्ती का ये अनमोल बंधन बहुत ही प्यारा होता है
चोट लग जाती एक को भी ,तो दूसरे को दर्द भी होता है
इस अनमोल रिश्ते को कैसे मै समझाऊँ
इस प्यारे बंधन के लिए मैं शब्द कहाँ से लाउ
सच बोलू तो संभव नहीं ,इस रिश्ते को परिभाषित कर पाना
जितना लिखूंगा होगा ,सूरज को बस दीप दिखलाना
एक बार उठा के पढ़ लो अपना तुम इतिहास
मेरी बातों का स्वतः ही हो जायेगा विस्वास
किस तरह कर्ण ,दुर्योधन से ,दोस्ती का फर्ज निभाता है
अपने प्राणो की बलि दे ,इस रिश्ते को अमर कर जाता है
कौन भुलाये भूल सकता है ,उस सच्ची यारी को
एक बार याद कर लो ,सुदामा और मुरारी को
अपने दोस्त की दशा देख ,कृष्णा कैसे बिलख -बिलख के रोता है
तीनो लोको का स्वामी ,अपने असुअन से उस कंगले के पग को धोता है
एक सच्चे दोस्त के बिना धन दौलत सब कुछ है बेकार
अरे भाग्यवान ओ होते हैं जिन्हे मिल जाते हैं सच्चे यार
सो दोस्तों की बातो को कभी दिल से न लगाना
और हो सके तो इस रिश्ते को मरते दम तक साथ निभाना
रंजन कुमार पंडित