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जिंदगी........एक अधूरा सफ़र

अध्याय-6

इसी बीच मेरा जन्मदिन भी आया जनवरी माह के पहले सप्ताह में, मैंने राज के लिए पार्टी दी थी, अपने जन्म दिन पर लेकिन जिस दिन हमारा पार्टी का दिन तय हुआ था, उस दिन राज का मन नहीं था लेकिन फिर भी राज मेरे साथ चले गये थे । खाना खाने के दौरान राज ने मुझे महसूस करा दिया था, कि अब राज मुझसे अपने प्यार का इजहार कर देंगे।

राज थोड़े से लापरवाह हो गये थे अब, और मैं अब थोड़ा सा वक्त औरों के साथ बिताने लग गयी थी, उनमें से एक राज के बारे मुझसे जानने कि कोशिश भी करता था, पता नहीं क्यूँ, लेकिन उसका व्यवहार मेरे लिए सही था, इसलिए जब भी वह राज के लिए कुछ बोलता तो अक्सर उसकी बातों को टाल दिया करती थी।

मेरी एक दोस्त थी ऑफिस में, उसने मुझे एक दिन कहा, देखों तुम इस को बोल दो कि तुम भी उसे प्यार करती हो” मैंने उनकी बात को काटते हुए कहा, यदि राज मुझसे प्यार करता है तो वो भी तो मुझ से कह सकते हैं”। इस पर उसने कहा ठीक है, मत कहो तुम उससे, अब वो इन्तजार ज्यादा दिन नहीं करेगा, वो तुम्हें बोल देगा।

राज मंगलवार को व्रत रखते थे, एक रोज राज का सुबह फोन आया बुधवार के दिन “पिया मेरा खाना ले आना दोपहर का”, मैं उस दिन उनका खाना लेकर गयी थी।

11:00 बजे राज मुझसे बोले “पिया चलो खाना खाते हैं, मुझे बहुत भूख लग रही है”। मुझें भूख नहीं थी, इसलिए मैं उन्हें बोली, राज, आप खाना खा लो, मेरे लिए छोड़ देना”, पता नहीं उन्हें मेरा ये व्यवहार अच्छा नहीं लगा l उन्होंने खाना नहीं खाया, मैंने उन्हें दोपहर में पूछा था, पूछा नहीं कहा था, कि “चलो खाना खाते हैं”। उन्होंने मना कर दिया कि मुझे भूख नहीं है, और उस दिन मेरा खाना रखा रह गया, मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था राज पर। लेकिन राज का मंगलवार का व्रत था, और अगले दिन भी खाना नहीं खाया। मुझे ये भी बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन राज मुझसे गुस्सा हुऐ थे, इसलिए मैं भी राज से कुछ नहीं बोली।

शाम को मैं जब घर पहुँची, तब राज का फोन आया “पिया, मैंने कल खाना नहीं खाया था, जब मैं तुमसे कह रहा था, कि खाना खाते हैं, तो तुमने मना कर दिया”, जब तुम्हें मेरे साथ खाना ही नहीं था, तो फिर मना ही कर देते खाना लाने के लिए”। उस दिन राज के शब्द बदले हुए थे, उनका दर्द झलक रहा था, मेरे व्यवहार से, मैं उन्हें कुछ भी नहीं बोली क्योंकि मुझे भी अच्छा नहीं लगा था, एक तो राज मंगलवार को पूरे दिन भूखे थे, उसके बाद मेरा उनके साथ ये व्यवहार।

दूसरी तरफ से फिर आवाज आयी “पिया नाराज हो क्या मुझसे”, मैंने कहा नहीं तो, और ऐसा क्यूँ बोल रहे हो”, राज ने बस इतना ही कहा, कल मेरा खाना ले आना”, और उन्होंने फोन रख दिया, मैंने उन्हें दोबारा फोन नहीं किया, क्योंकि राज नाराज थे, इसलिए मैं भी राज से सवाल-जबाव नहीं करना चाहती थी।

अगले दिन मैंने उनके आते ही कहा “चलो राज नाश्ता कर लो” भूखे हो दो दिन से, राज ने पिछले दिन को कुछ चर्चा नहीं की थी, बस इतना कहा था, तुम बहुत अच्छी हो, और मैं खुशनसीब हूँ कि मुझे दोस्त के रूप में तुम मिले”। राज जब मुझसे ऐसी बातें करते थे, तब उनका चेहरा कुछ अधिक मासूम हो जाता था।

8-2-1989, राज ऑफिस में कुछ परेशान से दिख रहे थे, मैं भी उनसे किसी बात पर गुस्सा हो गर्इ थी। मेरे घर पहुंचने के बाद राज का फोन आया, पिया........” उसके बाद कुछ आवाज नहीं आयी”, हैलो......., हैलो, राज क्या तुम मुझे सुन रहे हो”, कुछ देर के मौन के बाद, “पिया......., पिया तुम मेरी हो जाओ ना हमेशा के लिए”, रा.....राज क्या कह रहे हो तुम, क्या तुम मुझसे.........., .... प्यार...... करते हो”।

काफी देर के सन्नाटे के बाद राज की आवाज आयी “पिया मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ, अपने आप से भी ज्यादा, और ये बात तुम भी जानती हो, अब तुम्हारे बिना मुझे सब कुछ सूना लगता है, नहीं रह पा रहा हूँ, तुम्हारे बिना”, ...... I love you

फिर से मौन पसर जाता है, राज का प्यार का इजहार होना ही था, ये बात तो मैं भी जानती थी, लेकिन अब तक देर हो चुकी थी शायद, इस देर को हमारा सन्नाटा भली-भांति बता रहा था l फिर आवाज आयी “पिया, तुम भी मुझसे प्यार करती हो ना”, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि राज को क्या बोलूं, बस इतना ही कह पायी कि “राज मैं तुम्हें प्यार नहीं करती, बस एक अच्छा दोस्त समझती हूँ, और आप पागल हो गये हो हैं, सो जाइए अब, कल की सुबह से ये सब मत सोचना, आज का आज ही रहने दो और भूल जाओ सब। कल एक नर्इ शुरुआत करना एक नर्इ सोच के साथ।“ और मैंने फोन रख दिया।

उस रात भी मैं ठीक से नहीं सो पायी, मुझे राज अब भी अच्छे लगते थे l शायद उन्होने प्यार का इजहार करने में कुछ ज्यादा ही देरी ही कर दी थी, इस वक्त में राज ने मुझे जानना चाहा था, और मेरा राज की तरफ आकर्षण कम हो गया था, या राज के एक मज़ाक ने अपने आप से मुझे दूर कर दिया था l

अगले दिन 9-2-1990, राज सुबह ऑफिस आए और बोले, पिया चाय पीने चलते हैं, उन्होंने कले के बारे में कुछ नहीं पूछा था, वो सामान्य व्यवहार कर रहे थे, और दिनों की तरह। अब मैं समझ नहीं पा रही थी, राज ने सच में नर्इ शुरुआत की है, या फिर वो मुझसे उस बारे में बात नहीं करना चाहते। मैंने भी राज से समान्य व्यवहार करने की कोशिश की, लेकिन मैं ये भी चाहती थी की राज मुझसे अपने लिए फिए से बात करें, क्योंकि मुझे जानना था की पूरा सच क्या है l

14-2-1990, पिया, मुझे तुम्हें कुछ बताना है, बहुत जरूरी बात है”, जिस दिन राज ने अपने प्यार का इजहार किया था, उस दिन के बाद राज ने सामान्य व्यवहार किया था। और पता नहीं क्यों राज की बातें मुझे पहले जितनी अच्छी नहीं लगती थीं। मैं अब उन्हें कम महत्व देने लग गर्इ थी, शायद इसलिए क्योंकि मुझे पता था, राज मुझसे प्यार करते हैं, राज सिर्फ मेरी बात मानेंगे, वो अब कुछ नहीं बोलेंगे मुझसे।

शाम के 5:30 बज रहे थे, राज ने दोबारा कहा, पिया तुम्हें कुछ जरूरी बात बतानी है l मैंने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया, उन्हें अनसुना कर दिया। राज कहते रह गये, लेकिन मैं अपने नखरे की वजह से अपने दोस्त को नहीं समझ पार्इ, उस दोस्त को जिसने मुझे अपना माना था, मेरे लिए अपनी आदतों को बदला था, उस दोस्त को मैंने अहमियत देना छोड़ दिया था, बिना कुछ कारण बताये, हमारे उस प्यारे से दोस्ती के रिश्ते में दरार आ गर्इ थी।

करीब एक घंटे बाद 6:30 बजे मैंने राज को देखा तो उनका चेहरा बदला हुआ था, वो निराश और नर्वस हो गये थे, पता नही ऐसा क्या हुआ था, मैं उन्हें सिर्फ अपना नखरा दिखाना चाहती थी, लेकिन राज का बदला हुआ चेहरा कुछ और ही बयाँ कर रहा था।

अगले तीन दिन तक राज ने मुझसे कोर्इ बात नहीं की, उनका चेहरे से साफ झलक रहा था कि राज बहुत परेशान हैं, उनकी परेशानी मुझसे देखी नही गर्इ और आखिरकार 17-2-1990, शाम 5:00 बजे मैं राज के पास गर्इ और बोली, क्या हुआ राज तुम्हें कोर्इ, परेशान क्यूँ हो”, नहीं पिया मैं ठीक हूँ”, मुझे अब सब कुछ सही नहीं लग रहा था, लेकिन जो राज दिन में कितनी बार पानी पिया है वो भी मुझे बताते थे, आज कह रहे हैं कि मैं ठीक हूँ। “तो फिर ये बुरी सी शक्ल बनाके क्यूँ बैठे रहते हो”, राज ने कुछ जबाव नहीं दिया मेरी बात का, थोड़ी देर बाद मैंने कहा, मुझको आपसे बात करनी है, आज ऑफिस के जाने के बाद ।“ मुझे पता था राज मेरे साथ जरुर आयेंगे, इसलिए मैंने उनके हाँ या ना का इन्तजार नहीं किया था

उस दिन हम जल्दी चले गये थे ऑफिस से। जब हम ऑफिस से निकलने के बाद रास्ता तय कर रहे थे, एक निश्चित स्थान के लिए तो मैंने कहा “राज अगर कुछ जरूरी नहीं हो तो मैं चली जाऊं”, हाँ - हाँ क्यों नहीं, तुम जा सकती हो”। राज के इतना कहने पर मैं जाने लगी तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा “पिया तुम इतनी सी बात पर नाराज क्यों हो जाती हो”।

थोड़ी देर बाद हम एक मॉल के सामने लगी कुर्सियों पर बैठ गये थे वहां केवल तीन ही कुर्सियां थीं, और वहाँ अब तीसरा व्यक्ति नहीं आ सकता था, क्योंकि अक्सर वहाँ कम से कम दो लोग ही आया करते थे। राज ने मुझे खाने के लिए पूछा, मैं कुछ दवाइयाँ ले रही थी उस वक्त, इसलिए मैंने मना कर दिया।

पाँच मिनट के मौन के बाद राज ने जब बातें शुरु की, उनका उस दिन व्यवहार बिल्कुल बदला हुआ था, मैंने उन्हें ऐसा समझा ही नहीं था, उन्होंने कुछ बताया नहीं बस गुस्सा निकाला मेरे ऊपर, उनके इस व्यवहार ने चीजें और खराब कर दी, क्योंकि मुझे किसी का गुस्सा पसन्द नहीं था, कि कोर्इ अपना गुस्सा मेरे ऊपर निकाले । हमने करीब एक घंटे बात की, लेकिन वो बातें नहीं हुर्इ, जो मुझे जाननी थी, निकला था सिर्फ गुस्सा, राज के गुस्से के कारण मैंने राज से उनकी परेशानी भी नहीं पूछी, जिसके लिए हम लोग ऑफिस से जल्दी निकले थे। राज की बातों से बस इतना जान पायी की राज मुझसे इसलिए गुस्सा हैं, क्योंकि आज से तीन दिन पहले मैं राज के साथ बाहर नहीं आई थी । मैं वहाँ से चली गर्इ ये कहकर कि हमारा रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो चुका है, मैं शादी वहाँ करूँगी जहाँ मेरे पापा पसन्द करेंगे, और आज के बाद मुझसे कोई उम्मीद मत रखना ।

बाय हमेशा के लिए!!

पता नहीं उस दिन मुझे क्या हुआ था, कि मैने अब राज को सबक सिखाने के लिए ठान लिया था। घर जाने के बाद मैं किसी से कुछ नहीं बोली, बस तय कर चुकी थी कि अब राज को सबक सिखाना है, उन्हें अपनी औकात दिखानी है।

मुझे राज पर गुस्सा इसलिए आ रहा था, क्योंकि पिछले तीन दिनों से राज परेशान लग रहे थे, इसलिए सोच रही थी कि वो अपनी परेशानी बतायेंगे मुझे, लेकिन उन्होंने अपना गुस्सा निकाल दिया मुझ पर।

उस रात को एक ऐसा रिश्ता खत्म हो गया था, जो पूर्ण रूप से बना भी नहीं था । काश उस दिन किसी एक ने अपने गुस्से पर काबू रखकर एक-दूसरे की भावनाओं और अपने रिश्ते को समझा होता तो शायद वो रिश्ता यूं ही खत्म ना होता। राज ने मुझसे एक बार कहा था, कि अत्यधिक खुशी में कभी किसी से वादा नहीं करना चाहिए और गुस्से में कोर्इ फैसला नहीं लेना चाहिए। लेकिन मैंने उनको नजर अंदाज करते हुए फैसला ले लिया था।

नींद नहीं आयी थी, उस रात, सारी रात उथल-पुथल, कभी राज के साथ बिताया हुआ वक्त याद आ रहा था, कभी उनके बारे में सुनी गर्इ लोगों की बातें, तो कभी कुछ।

18-2-1990, राज ऑफिस आते ही मुझसे बोले, पिया मुझे माफ कर दो, पता नहीं कल मैने गुस्से में क्या-क्या कह दिया था”, मैंने उन्हें कुछ जबाव नहीं दिया और अपनी कुर्सी से दूसरी जगह चली गर्इ, उस दिन राज ने मुझसे बात करने की कोशिश की कर्इ बार, लेकिन मैंने उन्हें कुछ जबाव नहीं दिया, और उन्हें कहा “राज हमारी दोस्ती खत्म हो चुकी है, हमेशा के लिए, और जो तुम बोल रहे हो मुझे उससे कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला”।

19-2-1990, राज ने फिर कोशिश की, लेकिन मैंने नहीं सुनी, राज के चेहरे से खुशी गायब हो चुकी थी, उनके चेहरे पर उदासी झलक रही थी, शायद पश्चाताप कर रहे थे। लेकिन मेरा गुस्सा और बढ़ता जा रहा था, क्योंकि वो बार-बार मुझसे एक ही बात बोले जा रहे थे, मैं चाहती थी, कि राज मुझसे बात न करें और मुझे परेशान न करें। क्योंकि मेरा खुद के गुस्से पर काबू नहीं था।

20-2-1990 और 21-2-1990, अगले दो दिन यूँ ही गुजर गये, राज किसी से बात नहीं करते थे अब। अगले दिन यानी 22-2-1990 से मैंने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी, पूरे एक सप्ताह के लिए। इस बीच राज का रोज फोन आता था मुझे, मैं उन्हें सुनती और फोन रख देती, इस सात दिनों में कभी भी जबाव देना जरूरी नहीं समझा।

जब मेरी छुट्टियां खत्म हो गर्इ और दोबारा से ऑफिस शुरू किया तो राज ने फिर मुझसे बातें करना शुरू किया, लेकिन मैं अपने फैसले पर अड़िग थी। मैं उन्हें देखती थी, तो कभी-कभी तरस आता था उन्हें देखकर, उनकी दिनचर्या बदल चुकी थी, अब पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा था। मुझे दुख भी होता था उन्हें देखकर, वे अपनी कुर्सी छोड़कर कहीं नहीं जाते थे, उनके अन्दर इतनी हिम्मत नहीं रही थी कि मुझसे नज़रें मिलाकर बात कर सकें। कभी-कभी मेरे पास आते, और कहते “पिया मुझसे समय नहीं काटा जा रहा है, मुझे माफ कर दो ना अब”, मैंने कोशिश की उनकी आँखों में झांककर देखने की, उनमें दर्द था, तड़प थी अजीब सी, लेकिन उनका दर्द मुझे नहीं पिघला पाया।

कुछ दिनों के बाद होली थी, होली से ठीक एक दिन पहले ऑफिस में सब लोग एक-दूसरे को गले लगा रहे थे, बधाइयाँ दे रहे थे, और अपने-अपने घरों के लिए जाने वाले थे, सब लोग बहुत खुश थे, कोर

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